चेन्नई. लॉकडाउन में बिजनेस में मंदी एवं नौकरियां छिनने से पारिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों में दरारें आने लगी है। पति-पत्नि के रिश्तों में कड़वाहट घुल गई। आर्थिक तंगी ने लोगों में मानसिक तनाव व पारिवारिक कलह का कारण बन गई। इमोशनल लगाव पीड़ा में बदल रहा है। सामाजिक रिश्तों के अलावा हमारे खून के रिश्तों पर भी कोरोना का गहरा असर पड़ा हैै। पड़ौसी तो दूर करीबी रिश्तेदार भी सवालिया निगाहों से देखने लगे हैं। लॉकडाउन में घर में बैठे रहने से लोगों की मानसिक दशा एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रही। आपसी मदद मांगने के भय से लोगों ने अपनों से ही दूर बना ली। अर्थव्यवस्था बन्द होने से रिश्तों का आर्थिक दबाव पडऩे से रिश्तों की डोर खिंच गई व तनाव बढ़ गया। लाकडाउन ने रिश्तों का सख्त इम्तिहान लिया है।
महिलाओं पर भी दिखा असर
नौकरी गंवाने का ज्यादा प्रभाव महिलाओं ने झेला। एक तो उनकी नौकरी गई, दूसरे उन पर घर के काम का बोझ बढ़ गया। विशेषज्ञों का कहना हैपारिवारिक झगड़े में शांत होकर एक दूसरे की भावनाओं व परेशानियों के समझें, काउंसलर का सहरा भी लिया जा सकता है।
नए आइडिये की तरफ ध्यान खींचेेंं तो खुद ही निर्णय लेने में सक्षम
किसी भी आकस्मिक स्थिति में पांच स्थितियां काम करती हैं-डिनाइल, बार्गेनिंग, एंगर, डिप्रेशन व एक्सेप्टेन्स। नौकरियां छूटने एवं बिजनेस में मंदी का सामाजिक रिश्तों पर जरूर असर पड़ा है। उनकी सिचुएशन को समझकर इस हालात से उबर सकते हैं। यह स्थिति की स्टेज तथा प्रभाव पर निर्भर है। उनका नए आइडिये की तरफ ध्यान खींचेेंं तो वे खुद ही निर्णय लेने में सक्षम बन सकते हैं।
सोशिना, मनोविज्ञानी सलाहकार, यू एंड आई लाइफ क्राफ्ट, चेन्नई
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